आर्य समाज (1875) स्थापना कब और कैसे हुआ ?

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Aary Samaaj Dayanand Saraswati

आर्य समाज आंदोलन का प्रसार प्रयोग पाश्चात्य प्रभाव की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ | Dayanand Saraswati दयानंद सरस्वती(मूल शंकर) का जन्म 1824 में गुजरात की मोरवी रियासत के निवासी एक ब्राम्हण कुल में हुआ वे 15 वर्ष तक स्थान-2 पर घूमते रहे अंत में वह मथुरा पहुंचे और वहां के नेत्रहीन गुरु स्वामी विरजानंद के शिष्य के रूप में ढाई वर्ष तक ज्ञान प्राप्त किया 1863 में हिंदुओं के मध्य विवाद धार्मिक आडंबर का विरोध किया तथा पाखंड खंडनी पताका लहराई| 1875 उन्होंने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य- प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुन: स्थापना करना था 1877 में आर्य समाज का अधिक प्रसार हुआ| दूसरी तरफ अधिक परंपरावादी शिक्षा के प्रसार के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने 1902 में हरिद्वार के निकट गुरुकुल की स्थापना की| 1877 में ही आर्य समाज(शाखा) लाहौर की स्थापना हुई|

दयानंद सरस्वती  द्वारा धर्म सुधार आन्दोलन

दयानंद सरस्वती संस्कृत भाषा और खड़ी बोली हिंदी दोनों को ही संप्रेषण का माध्यम मानते थे उन्होंने हिंदी भाषा में सत्यार्थ प्रकाश लिखा| धार्मिक क्षेत्र में दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा बहुदेववाद, अवतारवाद, पशु बलि, जंत्र मंत्र तथा झूठे कर्मकांडों को स्वीकार नहीं किया|


राजा राम के समान ही दयानंद सरस्वती भी एक ईश्वर में विश्वास करते थे| उन्होंने भी जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह, और समूह यात्रा के निषेध के विरुद्ध तथा स्त्री शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया| उन्होंने शुद्धि आंदोलन भी चलाया| शुद्धि धर्म का तात्पर्य यह है कि भारत को राष्ट्रीय सामाजिक एवं धार्मिक रूप में एक करने के आदर्श को प्राप्त करना था|

इसके अतिरिक्त इस आंदोलन द्वारा धर्मांतरित हिंदुओं को हिंदू धर्म में लाने का प्रयत्न किया| यह आंदोलन विशेष रूप से ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध चलाया गया था| क्योंकि इन्होंने भारतीय कमजोर वर्ग को पर्याप्त संख्या में धर्मांतरण के लिए ईसाई बनने के लिए उकसाया था| यद्यपि यह आंदोलन विवादास्पद था| इसके अलावा आर्य समाज का दूसरा विवादास्पद आंदोलन गौ रक्षा आंदोलन था| जिससे गंभीर संकट उत्पन्न हो गया| 1922 ईस्वी में आर्य समाज में गौ रक्षा संघ का गठन किया| तथा वेलेंटाइन शिरोल ने सत्य में आर्य समाज को भारतीय अशांति का जन्मदाता कहा| महात्मा हंसराज, पंडित गुरुदत्त, लाला लाजपत राय एवं श्रद्धानंद इसके विशिष्ट कार्यकर्ताओं में से थे| आर्य समाज का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में विशेष रूप से हुआ|



आर्य समाज के सामाजिक कार्य

भारत के सामाजिक इतिहास में दयानंद सरस्वती पहले ऐसे सुधारक थे, जिन्होंने शूद्र तथा स्त्री को वेद पढ़ने,ऊंची शिक्षा प्राप्त करने, यज्ञोपवित धारण करने तथा अन्य सभी क्षेत्रों में ऊंची जाति प्रथा पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त करने के लिए आंदोलन किया| परंतु संभवत: सबसे अधिक कार्य उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किया|नके अनुसार पुत्र तथा पुत्रीया एक समान है| आर्य समाज का सबसे अधिक प्रभाव “विद्या” तथा “सामाजिक सुधार” के क्षेत्र में देखने को मिला| शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया| शिक्षा के क्षेत्र में आगे चलकर आर्य समाज दो दलों में विभाजित हो गया| एक दल राज्य शिक्षा का समर्थक था तो, दूसरा दौर पश्चात शिक्षा का समर्थक था| प्राच्य शिक्षा के समर्थकों ने 1902 ईस्वी में हरिद्वार में एक “गुरुकुल” स्थापित कर लिया|

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